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सुप्रीम कोर्ट और अल्पसंख्यक आयोग जेलों का करे दौरा - रिहाई मंच

6 साल से बंद फरहत के खिलाफ 70 में से सिर्फ 14 लोगों की हुई गवाही, ठंड में भी सिर्फ 1 कम्बल दिया जा रहा है
भोपाल जेल में बंद फरहत और शराफत की मां ने रिहाई मंच से साझा किया दर्द
पर्यावरण पर स्वतः संज्ञान लेने वाला सुप्रीम कोर्ट आतंकवाद के आरोपियों के हत्याकांडों पर चुप क्यों

लखनऊ 2 दिसम्बर 2016। रिहाई मंच ने आरोप लगाया है कि भोपाल में सिमी से जुड़े होने के आरोप में बंद मुस्लिम युवकों की फर्जी मुठभेड़ में हत्या के बाद भोपाल समेत पूरे देश में आतंकवाद के आरोपों में बंद मुसलमानों का जेल के अंदर उत्पीड़न किया जा रहा है। मंच ने सर्वोच्च न्यायालय से अपील की है कि वह जेलों में बंद इन आरोपियों की स्थिति का जायजा लेने के लिए एक उच्च स्तरीय कमेटी गठित करे। मंच ने अल्पसंख्यक आयोग से भी जेलों का दौरा करने की मांग की है।



रिहाई मंच द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में मंच के महासचिव राजीव यादव ने आरोप लगाया है कि भोपाल फर्जी मुठभेड़ के दोषी पुलिस अधिकारियों को सजा देने के बजाए भाजपा सरकार आतंकवाद के आरोप में बंद बाकी मुस्लिम आरोपियों का जेल में लगातार उत्पीड़न कर रही है। उनसे उनके कपड़े समेत बाकी रोजमर्रा के सामान तक छीन लिए गए हैं और ठंड के बावजूद उन्हें सिर्फ एक कम्बल दिया जा रहा है जबकि उससे पहले ठंड के मौसम में उन्हें 3 से 4 कम्बल दिए जाते थे। रिहाई मंच महासचिव ने कहा है कि उन्हें भोपाल जेल में बंद फरहत और शराफत की मां सायरा बानो ने फोन करके बताया कि भोपाल फर्जी मुठभेड़ से पहले उन्हें 8 दिनों में दो बार अपने बेटे से 20-20 मिनट के लिए मुलाकात कराई जाती थी। लेकिन अब जेल मैन्यूअल के खिलाफ जाते हुए उन्हें 15 दिनों में सिर्फ 5 मिनट की मुलाकात कराई जा रही है। उन्हें जेल मैन्यूअल के खिलाफ जाते हुए 24 घंटे तक बंद रखा जा रहा है, यहां तक कि पानी के लिए भी उन्हें तरसा दिया जाता   है और परिजनांे को धमकी दी जाती है कि उनके बच्चों को वे लोग जब चाहे तब मरवा सकते हैं। राजीव यादव ने कहा कि फरहत के खिलाफ पिछले 6 साल में 70 में से सिर्फ 14 गवाहों की गवाहियां ही हुई हैं जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि मुकदमें में कोई दम न होने के कारण जानबूझ कर उसे लम्बा खींचा जा रहा है। जिसके लिए कभी गवाहों का न उपलब्ध होना तो कभी वीडियो कैमरा खराब होने का बहाना बनाया जाता है।



राजीव यादव ने आरोप लगाया है कि मुकदमे को टालने से लेकर, मुलाकात की समय सीमा घटाने और ठंड में सिर्फ एक कम्बल देना, इन विचाराधीन कैदियांे को मानसिक और शारिरिक तौर पर कमजोर करके धीरे-धीरे मारने की साजिश है। गौरतलब है कि भोपाल में करीब 30 लोग आतंकवाद के आरोपों में बंद थे जिनमें से 8 को पुलिस और खुफिया एजेंसियों ने फर्जी मुठभेड़ में मार दिया है।  



राजीव यादव ने आरोप लगाया कि भोपाल जेल प्रशासन 31 अक्टूबर हो हुए फर्जी मुठभेड़ जिसमें सिमी से जुड़े होने के आरोप में बंद 8 विचाराधीन कैदियों को जेल से फरार बता कर हत्या कर दी गई थी से जुड़े रहस्यों को बाहर जाने से रोकने के लिए बाकी विचाराधीन कैदियों को उनके परिजनों से मिलने से रोका जा रहा है। इसी तरह गुजरात के अहमदाबाद और जयपुर जेल में भी आंतकवाद के आरोप में बंद विचाराधीन कैदियों को डराने-धमकाने के साथ ही उनके परिजनों से मिलने में बाधा उत्पन्न की जा रही है। जो दर्शाता है कि ये एक सुनियोजित षडयंत्र के तहत हर जगह किया जा रहा है।



रिहाई मंच प्रवक्ता शाहनवाज आलम ने कहा है कि तेलंगाना में 5 विचाराधीन कैदियों की फर्जी मुठभेड़ में हत्या के बाद भोपाल में भी 8 विचाराधीन मुस्लिम कैदियों की हत्या पर तमाम हलकों से सवाल उठने और यहां तक कि मारे गए लोगों द्वारा खुद अदालतों को हत्या कर दिए जाने की साजिश से वाकिफ कराने के बावजूद सुप्रीम कोर्ट द्वारा संज्ञान लेकर जेलों के अंदर पुलिस और सरकारी तंत्र द्वारा रचे जा रहे आपराधिक षडयंत्रों की जांच न करना सुप्रीम कोर्ट की मंशा को भी कटघरे में खड़ा कर देता है। उन्होंने कहा कि जो सुप्रीम कोर्ट बाघों की मौत और पर्यावरण पर स्वतः संज्ञान ले लेता है उसकी आतंकवाद के आरोपियों के देशव्यापी फर्जी मुठभेड़ों पर चुप्पी न सिर्फ उसकी गरिमा को धूमिल करती है बल्कि उसका रवैया फर्जी मुठभेड़ों को प्रोत्साहित करने वाला है। उन्होंने आरोप लगाया है कि आतंकवाद के फर्जी आरोपों में फंसाए गए मुस्लिम युवकों की रिहाई से सरकारों, सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों की होेने वाली बदनामी से बचने के लिए ही उन्हें कभी फरार दिखा कर तो कभी बिमार दिखा कर मारने के बढ़ते चलन पर अल्पसंख्यक आयोग की चुप्पी ने खुद इस आयोग को ही मजाक बना दिया है। उन्होंने मांग की है कि अपनी गरिमा और निश्पक्ष छवि को बचाए रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट और अल्पसंख्यक आयोग को विभिन्न जेलों में बंद आतंकवाद के आरोपियों की स्थिति का जायजा लेने के लिए आयोग गठित कर जेलों के अंदर दौरे करने चाहिए ताकि विचाराधीन कैदियों की सुरक्षा की गारंटी हो सके। 

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