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"10 दिन का गोला बारूद" गिरीश मालवीय ने खोली चाटुकार मीडिया की पोल

कल देश के सभी प्रमुख मीडिया ग्रुप ने एक खबर फ़्लैश की कि कैग की रिपोर्ट के अनुसार सेना के पास युद्ध की स्थिति में मात्र 10 दिन का गोला बारूद है ,
जब देश का चाटुकार मीडिया अचानक से ऐसी खबर अपने पहले पन्ने,अपनी हेडलाइन में देने लगे तो वाकई हैरत होती है वह भी ऐसे हालात में जब चीन का सरकारी मीडिया आप को युद्ध की चेतावनी दे रहा हो
अब इस पोस्ट में जो आप पढ़ने जा रहे है वो तथ्य आपको कोई भी मीडिया नही बताएगा यह बात 2016 की शुरुआत में भी उठी थी, देश भर में सेना में वास्तव में गोला बारूद की वाकई कमी है और वह कमी इसलिए थी क्योकि देश में पहली बार देश के रक्षा मंत्रालय से अपने ही हथियार और उपकरण पर कस्टम ड्यूटी मांगी गई थी चाहे पनडुब्बी हो, फाइटर विमान की ओवरहालिंग हो, मिसाइल की सप्लाई हो या फिर गोला बारूद, मोदी सरकार का निर्णय था कि जब तक रक्षा मंत्रालय कस्टम ड्यूटी नहीं देगा तब तक उपकरण उसे नहीं मिलेंगे,..................... ओर सबसे बड़ी मूर्खता यह थीं कि रक्षा मंत्रालय के बजट में ऐसा कोई प्रावधान ही नही किया गया था जिस से यह ड्यूटी चुकाई जाए, आप यकीन नही करेंगे लेकिन यह सच है लिंक कॉमेंट बॉक्स में दे दिए है देख लीजियेगा.............

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ओर ऐसा क्यों किया गया यह भी जान लीजिए, मोदी के प्रधानमंत्री बनने के पांच महीने बाद अनिल अम्बानी ने 20 दिसंबर 2014 को रिलायंस डिफेन्स टेक्नोलॉजीज कम्पनी स्थापित की. तीन महीने बाद अनिल ने रिलायंस डिफेन्स लिमिटिड भी बना डाली. उधर गौतम अडानी ने भी डिफेन्स सेक्टर में प्रवेश करने के लिए 25 मार्च 2015 को अडानी डिफेन्स सिस्टम्स का गठन किया.
कहा जाता है कि इस दोनों कॉर्पोरेट घरानों को डिफेन्स उत्पादन में फायदा पहुंचाने के लिए सरकार ने डिफेन्स के हर साजो सामान पर अगले साल यानी 2016 में कस्टम ड्यूटी लगा दी
दरअसल सरकार ने रक्षा खरीद 2016 की नयी नीति बनायी थी जो मई 2015 में गठित धीरेन्द्र सिंह समिति की रिपोर्ट पर आधारित थी इसकी सिफारिशों में स्वदेशी रक्षा उत्पादों की खरीद को बढ़ावा देने के लिए विदेश से आने वाले रक्षा उत्पादों पर कस्टम ड्यूटी लगाने की सिफारिश की गयी थी
 
 
 
एक मीडिया रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि इस रक्षा खरीद नीति 2016 में नीती निर्देशक प्रावधानों का घोर अभाव है जो इस तरह के दस्तावेजो का आधार होता है. ..........ओर इस नयी रक्षा नीती में ज्यादा जोर सिर्फ मेक इन इंडिया और जल्द खरीद पर दिया गया है ..............
इस नीति के तहत रक्षा खरीद परिषद को फास्ट-ट्रैक सौदे करने की शक्ति प्राप्त है पहले युद्ध के समय में ही फास्ट ट्रैक प्रक्रिया का पालन होता था, लेकिन अब रक्षा मंत्री के नेतृत्व वाली डीएसी ही इस पर फैसला कर सकती है......

इस नीति में यह भी कहा गया था कि अब से रक्षा खरीद की प्रक्रिया से जुड़ा मैन्युअल हर दो महीने में अपडेट होगा, विपक्ष को सरकार से पूछना चाहिए कि इस नीति के तहत अब तक कितने हथियार की खरीद हुई है, ओर वह हथियार किनसे खरीदे गए हैं..........

CNBC आवाज़ की एक पुरानी खबर के अनुसार एल एंड टी के सीनियर वीपी जे डी पाटिल का कहना है कि वित्त वर्ष 2017 में वही ऑर्डर आएंगे जो पहले से ही पाइपलाइन में है। वित्त वर्ष 2018 से नए ऑर्डर आने लग जाएंगे,
यानी आज इस खबर को इस बड़े पैमाने पर प्रचारित करने का साफ साफ यह मतलब हैं कि अब अडानी अम्बानी की डिफेंस कम्पनियों के हथियार बिना जांच परख के फ़ास्ट ट्रेक के तहत जल्दी जल्दी खरीद लिए जाए
इतना साफ परिदृश्य है अगर अब भी आप नही देख पा रहे हैं तो आप को क्या कहा जाए..............
आज इस ख़बर को जनचौक न्यूज़ पोर्टल में प्रकाशित किया गया है
-Girish Malviya 


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